बॉलीवुड में जब भी कोई एक्टर काम करने आता है तो उसका सपना हीरो बनने का होता है। मौका नहीं मिलने पर फिर वो सपोर्टिंग रोल या विलेन का किरदार करना शुरू कर देते हैं। आखिर इतने बड़े शहर में बिना कुछ काम किए टिकना भी बहुत मुश्किल है। 60 और 70 के दशक के एक ऐसे ही एक्टर थे मनमोहन। जिनका सपना हीरो बनने का था लेकिन फिल्मों में उनकी पहचान एक विलेन के रूप में बनीं। मनमोहन ने हिंदी के साथ बंगाली, गुजराती और पंजाबी फिल्मों में काम किया।
बचपन की बातें
मनमोहन का जन्म 28 जनवरी 1933 को जमशेदपुर में हुआ। उनकी परवरिश वहीं हुईं। वो एक अमीर बिजनेसमैन फैमिली से आते थे। उनके 3 भाई थे लेकिन बचपन से वो अपने तीनों भाइयों से बिल्कुल अलग थे और एक्टर बनना चाहते थे। उन्हें बिजनेस में कोई इंटरेस्ट नहीं था।
जमशेदपुर से पहुंचे मुंबई
पढ़ाई खत्म करने के बाद मनमोहन हीरो बनने का सपना लिए 1950 में मुंबई आ गए। वो मुंबई तो आ गए लेकिन यहां पर काम पाना बिल्कुल भी आसान नहीं था। 13 साल के लंबे संघर्ष के बाद उन्हें पहली फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के‘ (1963) में छोटा सा रोल मिला। इसके बाद भी मनमोहन के संघर्ष का सफर जारी रहा क्योंकि वो हीरो बनना चाहते थे।
फिर मिला बड़ा रोल
मनमोहन की दोस्ती उस दौर के मशहूर संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन से हो गई। उस समय हर दूसरी फिल्म में शंकर-जयकिशन का संगीत होता था। जयकिशन ने प्रोड्यूसर कंवल कश्यप से मनमोहन को मिलाया। कंवल कश्यप फिल्म ‘शहीद‘ बना रहे थे। इसमें उन्हें चंद्रशेखर आजाद का रोल मिला। फिल्म में मनोज कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई जो भगत सिंह बने थे।
नहीं मिला कोई फायदा
‘शहीद‘ में मनमोहन की एक्टिंग लोगों को बहुत पसंद आई। फिल्म सुपरहिट हुई और इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। फिल्म भले ही चल गई थी लेकिन इससे मनमोहन को बहुत फायदा नहीं हआ। उन्हें सपोर्टिंग रोल ही मिलते थे। ‘शहीद‘ के बाद उन्होंने फिल्म ‘जानवर‘ और ‘गुमनाम‘ में काम किया।
विलेन के रूप में बनी पहचान
मनमोहन ने फिल्मों में अलग-अलग तरह के रोल निभाए लेकिन निगेटिव किरदारों में एकदम जम गए। आज भी वो विलेन के रूप में ही पहचाने जाते हैं। अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने कई फिल्में कीं। वैसे तो मनमोहन का सपना हीरो बनने का था लेकिन विलेन बनकर ही उन्होंने नाम कमाया। वो इसी में खुश में थे कि कोई फिल्म विलेन के बगैर पूरी नहीं हो सकती।
महाराष्ट्र के गांव में कर रहे थे शूटिंग
भले ही मनमोहन फिल्मों में निगेटिव किरदार निभाए हों लेकिन असल जिंदगी में वो बहुत साधारण थे। अपनी फिल्मों और रोल के लिए वो बहुत मेहनत करते थे। एक बार वो मनोज कुमार के साथ महाराष्ट्र के एक गांव में शूटिंग कर रहे थे। उस गांव में बिजली की बहुत दिक्कत थी। फिल्म का पूरा क्रू अलग-अलग कॉटेज में रह रहा था।
रात मे हुआ हादसा
रात में बिजली नहीं होने के चलते मनमोहन पेट्रोमैक्स (एक तरह का लैम्प) जलाकर सोते थे। एक रात वो ऐसे ही सो रहे थे और अचानक पेट्रोमैक्स फट गया। मनमोहन आग की लपेट में आ गए और 80 फीसदी तक झुलस गए। चीखने की आवाज आई तो आस-पास के लोग उठे और देखा कि मनमोहन आग से झुलस गए हैं। उन्हें जल्दी ही पास के अस्पताल में ले जाया गया। डॉक्टरों ने इलाज तो किया लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि उनके साथ ऐसा हो जाएगा।
हादसे के कुछ दिनों बाद 26 अगस्त 1979 को मनमोहन दुनिया छोड़कर चले गए। उस वक्त उनकी उम्र केवल 46 साल थी। जब उनकी मौत हुई वो अपने गृहनगर जमशेदपुर में थे।
बेटे का भी हो गया निधन
मनमोहन के एक बेटे नितिन मनमोहन थे। वो प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे। नितिन मनमोहन ने ‘बोल राधा बोल‘, ‘आर्मी‘, ‘लव के लिए कुछ भी करेगा‘, ‘दस‘, ‘यमला पगला दीवाना‘ जैसी फिल्में बनाईं। दिसंबर 2022 में नितिन मनमोहन की हार्टअटैक से मौत हो गई।