जब क्रिकेट मैच देखते हुए इस कदर टेंशन में आया था एक्टर, हार्ट अटैक से हुई मौत

फिल्मों और टीवी में काम करने वाले कई एक्टर्स होते हैं जिन्हें शायद आप उनके नाम से ना जानते हों लेकिन चेहरा देखते ही एक झटके में पहचान जाते हैं। अपने किरदार में ये एक्टर इतना ढल जाते हैं कि लगता है कोई फिल्म नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी वो ऐसे ही हों। आज एक ऐसे ही एक्टर के बारे में बताते हैं जिन्होंने ज्यादातर फिल्मों और सीरियल में कॉमन मैन का रोल निभाया। इस एक्टर का नाम शफी इनामदार है।

बचपन से थी एक्टिंग में रुचि
शफी इनामदार का जन्म 23 अक्टूबर 1945 को मुंबई में हुआ। उनकी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के डोंगरी में हुई। स्कूलिंग खत्म करने के बाद उन्होंने केसी कॉलेज से बीएससी की डिग्री ली। पढ़ाई के दौरान ही शफी को एक्टिंग का शौक लग गया। वो स्कूल-कॉलेज में होने वाले नाटक में हिस्सा लिया करते थे।

बलराज साहनी से सीखे एक्टिंग के गुर
गुजराती थियेटर आर्टिस्ट प्रवीण जोशी की निगरानी में शफी ने करियर की शुरुआत डायरेक्टर के रूप में की। 1973 से 1978 तक उन्होंने हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी में लगभग 30 नाटकों में काम किया। इन नाटकों में वो एक्टिंग तो करते ही थे, डायरेक्टर भी थे। शफी मानते थे उनके करियर में एक्टर बलराज साहनी का अहम रोल है। थियेटर करने के दौरान उनकी मुलाकात बलराज साहनी से हुई जिनसे उन्होंने एक्टिंग की बारीकियां सीखीं।

shafi inamdar

थियेटर में कमाया नाम
70 के दशक के आखिर में जब पृथ्वी थियेटर की शुरुआत हुई तो शफी इनामदार को कई हिंदी नाटकों को प्रोड्यूस करने का मौका मिला। थियेटर की दुनिया में वो बड़ा नाम बन चुक थे। इसके बाद उन्होंने 1982 में खुद का थियेटर ग्रुप हम प्रोडक्शंस की स्थापना की।

इन सीरियल में किया काम
शफी ने 1984 में लोकप्रिय हिंदी कॉमेडी शो ‘ये जो है जिंदगी‘ में काम किया। इसमें उनके किरदार का नाम रंजीत वर्मा था। स्वरूप संपत ने उनकी पत्नी रेनू की भूमिका की। राकेश बेदी उनके बहनोई राजा बने थे। उनके मुख्य सीरियल में ‘आधा सच आधा झूठ‘, ‘मिर्जा गालिब‘ और ‘तेरी भी चुप मेरी भी चुप‘ है।

shafi inamdar

इस तरह मिली पहली फिल्म
हिंदी में शफी की पहली फिल्म ‘विजेता‘ थी। पहली फिल्म मिलने का किस्सा यूं था कि पृथ्वी थियेटर को शशि कपूर संभाल रहे थे। वो शफी की एक्टिंग से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपनी प्रोड्यूस की हुई फिल्म ‘विजेता‘ में शफी को पहला मौका दिया। इस फिल्म के डायरेक्टर पहलाज निहलानी थे।

एक्टिंग ही सबकुछ
शफी के लिए एक्टिंग ही सबकुछ था। उनके लिए यह मायने नहीं रखता था कि वो थियेटर, टीवी या फिल्म में काम कर रहे हैं। 80 के दशक में शफी ने कई बड़ी फिल्मों में काम किया। बीआर चोपड़ा की फिल्म ‘आज की आवाज‘ के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नॉमिनेशन मिला।

इन फिल्मों में किया काम
शफी ने ‘अर्ध सत्य‘, ‘इंकलाब‘, ‘हिप हिप हुर्रे‘, ‘आज की आवाज‘, ‘कमला‘, ‘अर्जुन‘, ‘सागर‘, ‘जान की बाजी‘, ‘सदा सुहागन‘, ‘दहलीज‘, ‘इंसाफ की आवाज‘, ‘संसार‘, ‘काला बाजार‘ सहित अनेक फिल्मों में काम किया। 1995 में शफी ने बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म हम दोनों बनाई। इस फिल्म में ऋषि कपूर और नाना पाटेकर मुख्य भूमिका में थे।

एक्ट्रेस से की थी शादी
निजी जिंदगी की बात करें तो उन्होंने मराठी एक्ट्रेस भक्ति बर्वे से लव मैरिज की थी। भक्ति दूरदर्शन में न्यूज रीडिंग भी करती थीं। उन्होंने कुंदन शाह की फिल्म ‘जाने भी दो यारो‘ में काम किया। इसके अलावा वो गोविंद निहलानी की फिल्म ‘हजार चौरासी की मां‘ में भी नजर आईं।

क्रिकेट देखते हुए आया हार्ट अटैक
एक्टिंग के अलावा शफी को क्रिकेट मैच खेलने और देखने का बड़ा शौक था। 13 मार्च 1996 को वो घर पर थे। उस दिन वो भारत और श्रीलंका के बीच सेमीफाइनल का मैच देख रहे थे। मैच का इस कदर रोमांच था कि टेंशन की वजह से उन्हें हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई। शफी के जाने के 5 साल बाद भक्ति की मौत कार एक्सीडेंट में हुई थी।

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